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रामचरित मानस


लंकांकाण्ड

हनुमानजी का सुषेण वै्य को
लाना एवं संजीवनी के लिए जाना,
कालनेमि-रावण संवाद, मकरी उद्धार,
कालनेमि उद्धार
* जामवंत कह बैद सुषेना। लंकाँ रहड़ को पठई लेना॥
धरि लघु रूप गयउ हनुमंता। आनेउ भवन समेत तुरंता॥
भावार्थ:- जाम्बवान् ने कहा- लंका में सुषेण वैद्य रहता है,
उसे लाने के लिए किसको भेजा जाए? हनुमान्जी छोटा
रूप धरकर गए और सुषेण को उसके घर समेत तुरंत ही
उठा लाए॥4॥
दोहा :
* राम पदारबिंद सिर नायउ आइ सुषेन।
कहा नाम गिरि औषधी जाहु पवनसुत लेन ॥55॥
| भावार्थ:- सुषेण ने आकर श्री रामजी के चरणारविन्दों में
सिर नवाया। उसने पर्वत और औषध का नाम बताया,
(और कहा कि) हे पवनपुत्र ! औषधि लेने जाओ।॥55॥
चौपाई :
* राम चरन सरसिज उर राखी। चला प्रभंजनसुत बल

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